बैंक में जमा पड़ी राशि की जबरन बना दी जीवन बीमा पॉलिसी, न्यायालय ने दिए 9 प्रतिशत ब्याज सहित राशि लौटाने के आदेश : जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग नागौर का फैसला

विनय एक्सप्रेस समाचार, नागौर। एक महिला के पति की दुर्घटना होने के बाद उसे क्षतिपूर्ति पेटे बड़ी राशि मिली, जो एक बैंक में जमा थी, उसने कुछ राशि आहरित कर ली और बाद में उसके खाते में एक लाख 10 हजार रुपए शेष थे। एक रोज महिला बैंक गई तो पता चला कि बैंक ने अपनी बीमा पॉलिसी के तहत उसकी खाते में पड़ी राशि में से 99 हजार रुपए की जीवन बीमा पॉलिसी कर दी है। जबकि महिला ने न तो बीमा पॉलिसी के लिए आवेदन किया और न ही मौखिक सहमति जताई थी। बैंक वालों ने उसकी जबरन पॉलिसी कर दी। मामला जब न्यायालय के संज्ञान में आया तो न्यायालय ने बैंक की बीमा पॉलिसी को रद्दद कर महिला के तमाम रुपए उसे 9 प्रतिशत ब्याज सहित लौटाने के आदेश दिए।
यह था प्रकरण
डीडवाना के भाटी बास निवासी मुन्नीदेवी माली ने नागौर के जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग के समक्ष 13 अप्रैल 2022 को एक परिवाद पेश कर बताया कि उसके पति घीसालाल माली की एक हादसे में मौत के बाद उसे एमएसीटी कोर्ट से क्षतिपूर्ति राशि के चैक मिले जो भारतीय स्टेट बैंक डीडवाना की शाखा में जमा थे। इस चैक से कुछ राशि उसने आहरित की तथा इसके बाद उसके खाते में एक लाख 10 हजार रुपए शेष थे। एक रोज जब वह उक्त राशि निकालने बैंक गई तो बैंक प्रबंधक ने बताया कि उसके खाते से 99 हजार रुपए की जीवन बीमा पॉलिसी बन गई है और वो 99 हजार हमने एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस कंपनी को ट्रांसफर कर दिए हैं। परिवादिया मुन्नीदेवी ने आयोग को अवगत कराया कि उसकी बीमा पॉलिसी जबरन बनाई गई है। उसने बैंक या इंश्योरेंस कंपनी को कभी भी बीमा करने के लिए न तो आवेदन किया और न ही मौखिक रूप से कहा। इसलिए उसकी पॉलिसी रद्द कराकर उसे बैंक में पड़े रुपए वापिस दिलाए जाए। परिवाद दाखिल होते ही आयोग ने डीडवाना की भारतीय स्टेट बैंक के शाखा प्रबंधक व एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस कंपनी मुंबई के एमडी के नाम नोटिस जारी किए। नोटिस मिलते ही अप्रार्थी संख्या 1 भारतीय स्टेट बैंक ने कहा कि पॉलिसी एसबीआई इंश्योरेंस कंपनी ने की है इसलिए परिवादिया उनकी उपभोक्ता नहीं है इसलिए परिवाद खारिज किया। उधर अप्रार्थी संख्या 2 एसबीआई इंश्योरेंस ने कहा कि आयोग को भौगोलिक क्षेत्राधिकार के तहत यह परिवाद सुनने का अधिकार नहीं है इसलिए परिवाद खारिज किया जाए।
यह दिया आयोग ने फैसला
आयोग के समक्ष बहस के दौरान परिवादिया व अप्रार्थीगणों की ओर से पेश किए गए दस्तावेजो के आधार पर अनेक साक्ष्य मिले। इस बहस के दौरान ही अप्रार्थीगण संख्या 2 ने बताया कि उन्होंने परिवादिया की पॉलिसी निरस्त कर दी है तथा जमाशुदा राशि हम परवादिया को देने को तैयार है। इस जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग नागौर के अध्यक्ष नरसिंहदास व्यास, सदस्य बलवीरसिंह खुडखुडिया व चन्द्रकला व्यास ने माना कि अब भले ही अप्रार्थी की ओर से बीमा पॉलिसी रद्द की गई हो और भले ही जमा राशि लौटाने की स्वीकृति दे दी हो मगर इससे पहले परिवादिया की जमाशुदा राशि की जबरन बीमा पॉलिसी करना व कहने के बावजूद जमा राशि नहीं लौटाना सेवा में कमी का दोष है। इससे परिवादिया को घोर मानसिक वेदना हुई है। इसलिए न्यायालय ने आदेश दिया कि अप्रार्थी संख्या 2 परिवादियों को उसकी जमा शुदा राशि अब 13 अप्रैल 22 से भुगतान दिवस तक 9 प्रतिशत ब्याज सहित लौटाएं। साथ ही परिवादिया को मानसिक वेदना के 5 हजार और परिवाद शुल्क के 5 हजार रुपए भी प्रदान करें। न्यायालय ने अप्रार्थी संख्या 1 के खिलाफ परिवाद निरस्त कर दिया।