पच्चीस से अधिक ऊंटनी के दूध से निर्मित उत्पाद विकसित, अन्य दुधारु पशु की तुलना में ‘कैमल मिल्क’ का औषधीय महत्व अद्वितीय : डॉ साहू

विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर। राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. आर्तबंधु साहू ने मंगलवार को कहा कि ऊंटनी के दूध की लोकप्रियता व उपादेयता को ध्यान में रखते हुए केन्द्र वैज्ञानिकों द्वारा लगभग 25 से अधिक ऊंटनी के दूध एवं इससे निर्मित उत्पाद विकसित किये जा चुके हैं। डेयरी प्रसंस्ककरण इकाई में इस दूध का संग्रहण, प्रसंस्करण कर ये उत्पाद केंद्र केमिल्कर पार्लर के माध्यम से बिक्री किए जाते हैं।

 

डॉ. साहू ने विनय एक्सप्रेस मीडिया ग्रुप के मुख्य संपादक विनय थानवी से विशेष बातचीत करते हुए कहा कि इस दूध की औषधीय महत्व अद्वितीय है जो कि अन्य दुधारू पशुओं के दूध की तुलना में इसे श्रेष्ठता प्रदान करता है। यह दूध, मधुमेह, टीबी, ऑटिज्म आदि जैसे विकारों में कारगर सिद्ध हुआ है, अत:इसे मानव औषधि के रूप में देखा जाना चाहिए। उसी आधार पर इसका बाजार में मूल्य भी आंका या तय किया जाए। दूध की एलर्जी पैदा नहीं करने के गुण को देखते हुए डॉ साहू ने इसे ‘बेबी फूड’ के रूप में उपयोग में लेने पर प्रस्ताव रखा। साथ ही चिकित्सकों द्वारा मानव रोगों में इलाज के रूप में अनुशंसा की जाए। उन्होंने जानकारी दी कि इंटरनेशनल मिलेट ईयर 2023 में ऊंटनी के दूध पाउडर व मोटे अनाज मिश्रित उत्पाद तैयार कर इन्हें तैयार किया गया है, जिससे इस क्षेत्र के ऊंटपालकों व किसानों को सीधे तौर पर लाभ मिल सकेगा। उष्ट्र प्रजाति को दुग्ध व्यवसाय के रूप में इसे अपनाए जाने पर क्षेत्र में ऊंटों की संख्या में बढ़ोत्तरी की प्रबल संभावनाएं विकसित होंगी। साथ ही राजस्थान सरकार को सुझाव देते हुए बताया कि सरकार आशा सहयोगिनी, मिड डे मील कार्यक्रम में शामिल करे तो मानव स्वास्थ्य के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकेगा।

डॉ. साहू ने ऊंटनी को एक दुधारु पशु बताते हुए श्रेष्ठ दूध उत्पादन हेतु नस्लों की पहचान करने पर भी जोर दिया क्योंकि भारत में मधुमेह रोगियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है और इस रोग के प्रबंधन में दूध की कारगरता के कारण जरूरतमंदों की मांग पूर्ति के लिए इस दिशा में आगे बढ़ाना चाहिए। इस दिशा में कुछ संस्थानों के साथ मिलकर चल रहे वैज्ञानिक प्रयासों के बारे में भी चर्चा की जिससे ऊंटनी के दूध मानव स्वास्थ के लिए अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकेगा। दूध में विद्यमान कई गुणों खासकर आयरन की पूर्ति के हिसाब से इसे राजस्थान सरकार के आशा सहयोगिनी कार्यक्रम, मिड डे मील आदि कार्यक्रमों में शामिल किए जाने की मंशा जताई। डॉ साहू ने ऊंट की ऊन व इससे निर्मित उत्पााद, पर्यटन में इसके महत्वआदि पर तथा इस व्यवसाय में अतिरिक्त आय अर्जित करने के लिए इसे व्यावसायिक रूप में भी देखा जा सकता है पर भी चर्चा की। विशेषकर उभरते उद्यमियों जो उष्ट्र दूध व्यवसाय के बारे में प्रशिक्षण लेना चाहते हैं या उस तकनीकी को लेना चाहते हैं वह केंद्र से संपर्क कर सकते हैं। इस अवसर पर केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आर.के.सावल, उष्ट्र डेयरी प्रौद्योगिकी एवं प्रसंस्करण इकाई के प्रभारी डॉ. योगेश कुमार भी मौजूद थे। इस मौके पर ऊंटनी के दूध के प्रदर्शित उत्पादों के सम्बन्ध में भी जानकारी दी गयी।

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