प्रदेश के संविदा कर्मी आवेद हसन की कहानी उसी की जुबानी : पढ़े आलेख

विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर। ये राजस्थान है, मेरा राजस्थान !और मैं इस राजस्थान का एक संविदा कर्मी हूँ। हर रोज घुटता हूँ, हर रोज मरता हूँ। हर सुबह नई आस लिए कार्यालय जाता हूँ कि आज हमारी सरकार हमारे हित की बात करेगी पर हर रोज उदास लौटता हूँ। जब इस नौकरी में आया तब के कुछ ही दिन में पता चल गया कि “”” मैं एक अच्छा बेटा नहीं बन पाया और अब पता चल रहा है कि मैं एक अच्छा पति और पिता भी नहीं पाया”” माँ-पिता को समय से आवश्यक सुविधा तो नहीं ही दे पाता हूँ अपने बच्चे की परवरिश भी नहीं कर पाता हूँ। सामाजिक प्रतिष्ठा को आघात खा ही चुका हूँ। संविदा कर्मी का ठप्पा इस रूप में पा लिया हूँ मानो एक कलंक है। डरता हूँ कि कल नौकरी रहेगी या हमारे साहब जो हमें रोज सड़क पर लाने की बात कहते हैं कहीं आज ला न दे बराबरी मांग नहीं सकता।आवाज उठा नहीं सकता। हक़ मिल नहीं सकता। हमारी बेहतरी कोई सोच नहीं सकता।

सभी को पसंद है हमारी ये स्थिति। सभी को पसंद है उनसे डरने वाला, उनके सामने गिड़गिड़ाने वाला, उनकी धूल में उड़ने वाला।
हे राजस्थान ! क्या मैं तेरा सपूत नहीं ? क्या मेरे कोई अरमान नहीं? क्या मेरे लिए समानता का हक़ नहीं? क्या मेरे माँ- बाप और बच्चों की जिंदगी नहीं? क्या हमारे लिए न्यायोचित सैलरी की आवश्यकता नही? क्या मेरे लिए समाजिक प्रतिष्ठा नहीं?
क्या एक ही जवाब है- You are in this job by your choice.
–आवेद हसन :बीकानेर