विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर। विगत दिनों राजस्थानी भाषा को राजभाषा बनाने के लिए कई विधायक विधानसभा में आवाज उठा चुके हैं। माननीय शिक्षा मंत्री भंवर सिंह भाटी ने आदेश जारी किया था कि 21 फरवरी को मातृभाषा दिवस के दिन रविवार होने के कारण राज्य के समस्त काॅलेजों में राजस्थानी भाषा दिवस 20 फरवरी को मनाया जायेगा। इस उपलक्ष में आज शनिवार को राज्य के अनेको विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में राजस्थानी भाषा दिवस मनाया गया हैं।
21 फरवरी को राजस्थानी मातृभाषा दिवस राजस्थान में मनाया जाएगा। इसी कड़ी में रविवार को कई संस्थाओं ने राजस्थानी भाषा पर परिचर्चा रखी है तो कई संस्थाओं ने ऑनलाइन वाद-विवाद प्रतियोगिता रखी है। वहीं बीकानेर में राजस्थानी मोट्यार परिषद के तमाम सदस्यों के द्वारा सर्किट हाउस के पास स्थित गांधी पार्क से पैदल मार्च का आयोजन रखा गया हैं।
राजस्थानी भाषा मान्यता के लिए एकजुट होने का आह्वान करते हुए प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. गौरीशंकर प्रजापत ने कहा नई शिक्षा नीति के तहत मातृभाषा में शिक्षा अनिवार्य की गई है। लेकिन राजस्थान में अभी मातृभाषा राजस्थानी को संवैधानिक दर्जा नहीं मिला है जो दुर्भाग्य पूर्ण हैं।
बीकानेर परिषद कोषाध्यक्ष राजेश चौधरी ने बताया कि जब तक प्रदेश में राजस्थानी भाषा को राजभाषा का दर्जा नहीं मिलता तब तक चैन की सांस नहीं लेंगे।
परिषद के महासचिव प्रशान्त जैन ने बताया कि वर्ष 2003 में अशोक गहलोत सरकार ने विधानसभा में राजस्थानी भाषा मान्यता के लिए सर्वसहमति से विधेयक पारित कर केन्द्र सरकार को भिजवाया जा चुका है। लेकिन अब तक मान्यता नहीं मिली यह बड़े दुर्भाग्य की बात है।
परिषद के अध्यक्ष विनोद सारस्वत ने बताया कि राजस्थान की 95 प्रतिशत जनता मातृभाषा राजस्थानी में बात करती हैं। फिर भी राजभाषा का आज तक दर्जा नहीं मिला है, केवल राजनीतिक मनासा के चलते यह नहीं हो रहा हैं।
उपाध्यक्ष मुकेश रामावत ने बीकानेर वासियों से आह्वान किया कि रविवार को राजस्थानी भाषा को मान दिलाने के लिए आयोजित पैदल मार्च में ज्यादा से ज्यादा जुड़े।
डॉ. नमामी शंकर आचार्य ने राजस्थान की आम जन से अपिल की है कि आगामी दिनों में होने वाली जनगणना में भाषा के कोलम में अपनी मातृभाषा जरूर दर्ज करें।
बीकानेर संभाग महामंत्री सरजीत सिंह ने बताया कि 75% बाहरी कोटा तय करने पर राजस्थान के बेरोजगारों को फायदा होगा। आज राजस्थान की शिक्षा एवं रोजगार की दृष्टि से अत्यंत पिछड़े राज्यों में शामिल है, अन्य राज्यों में वहां की मातृभाषा में शिक्षा एवं रोजगार की व्यवस्था की गई है। किंतु हमारे राजस्थान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जिससे यहां की परीक्षाओं में बाहरी राज्यों के विद्यार्थी आसानी से नौकरी लग जाते हैं और यहां के बेरोजगार पिछड़ जाते हैं। क्योंकि यहां पर अन्य राज्यों की तरह भाषा की बाढ़ नहीं है अतः हमें भी भारी कोटा तय करने के लिए राजस्थानी भाषा का ज्ञान यहां पर अनिवार्य करना होगा। जिससे किसी को भी राजस्थान में नौकरी करने हेतु राजस्थानी भाषा का ज्ञान होना अनिवार्य होगा जिससे राजस्थान के युवा को यहां की नौकरियों में सबसे ज्यादा फायदा होगा।
राजस्थान की भाषा राजस्थानी राजस्थानी भाषा, राजस्थान प्रदेशवासियों की मातृभाषा है । इसका संवर्धन व संरक्षण करवा हमारा दायित्व है । हमारी भाषा स्वतंत्रता पश्चात से ही पराई हो गयी थीं, जिससे कि हमारी संस्कृति व पहचान नष्ट होती जा रही है। इसके लिए राजस्थानी भाषा को राज्य में राजभाषा घोषित किया जाना चाहिए जिससे इसका प्रयोग व संरक्षण हो। कोई भी राज्य अपने राज्य की भाषा को राजभाषा का दर्जा दे सकता है इसके लिए केंद्र सरकार से संवैधानिक मान्यता की भी जरुरत नहीं होती। इसके सन्दर्भ में आपको बता दें कि
1. गोआ में , गोआ , दमन – दीव राजभाषा अधिनियम ( 1987 ) द्वारा कोंकणी भाषा को राजभाषा बनाया गया था , उस समय कोंकणी को केंद्र सरकार से संवैधानिक मान्यता नहीं थीं । उसके 5 वर्ष उपरांत कोंकणी को केंद्र सरकार में भी मान्यता दीं।
2. छत्तीसगढ़ राज्य में , छत्तीसगढ़ राजभाषा अधिनियम संसोधन ( 2007 ) द्वारा छत्तीसगढ़ी भाषा को राजभाषा बवाया गया। छत्तीसगढ़ी को भी संवैधानिक मान्यता नहीं है ।
3. झारखंड राज्य में , बिहार राजभाषा ( झारखंड संसोधन ) अधिनियम ( 2018 ) द्वारा मगही , भोजपुरी समेत 17 भाषाओं को राजभाषा बनाया गया। इन भाषाओं में अधिकतर को संवैधानिक मान्यता नहीं है।
4. मेघालय राज्य में , मेघालय राज्य भाषा अधिनियम ( 2005 ) द्वारा खासी व गारो भाषा को राजभाषा बनाया गया , इन्हें भी संवैधानिक मान्यता नहीं है ।
5. सिक्किम राज्य में , सिक्किम भाषा अधिनियम ( 1977 ) द्वारा भूटिया , लेपचा व नेपाली भाषा को राजभाषा बनाया गया , इनमें भूटिया व लेपचा भाषा को संवैधानिक मान्यता नहीं है ।
6. पश्चिम बंगाल राज्य में , पश्चिम बंगाल राजभाषा अधिनियम द्वितीय संसोधन बिल ( 2018 ) द्वारा खमतपूरी , राजबंशी भाषा को बिना संवैधानिक मान्यता राज्य की राजभाषा घोषित किया गया है ।
1. गोआ में , गोआ , दमन – दीव राजभाषा अधिनियम ( 1987 ) द्वारा कोंकणी भाषा को राजभाषा बनाया गया था , उस समय कोंकणी को केंद्र सरकार से संवैधानिक मान्यता नहीं थीं । उसके 5 वर्ष उपरांत कोंकणी को केंद्र सरकार में भी मान्यता दीं।
2. छत्तीसगढ़ राज्य में , छत्तीसगढ़ राजभाषा अधिनियम संसोधन ( 2007 ) द्वारा छत्तीसगढ़ी भाषा को राजभाषा बवाया गया। छत्तीसगढ़ी को भी संवैधानिक मान्यता नहीं है ।
3. झारखंड राज्य में , बिहार राजभाषा ( झारखंड संसोधन ) अधिनियम ( 2018 ) द्वारा मगही , भोजपुरी समेत 17 भाषाओं को राजभाषा बनाया गया। इन भाषाओं में अधिकतर को संवैधानिक मान्यता नहीं है।
4. मेघालय राज्य में , मेघालय राज्य भाषा अधिनियम ( 2005 ) द्वारा खासी व गारो भाषा को राजभाषा बनाया गया , इन्हें भी संवैधानिक मान्यता नहीं है ।
5. सिक्किम राज्य में , सिक्किम भाषा अधिनियम ( 1977 ) द्वारा भूटिया , लेपचा व नेपाली भाषा को राजभाषा बनाया गया , इनमें भूटिया व लेपचा भाषा को संवैधानिक मान्यता नहीं है ।
6. पश्चिम बंगाल राज्य में , पश्चिम बंगाल राजभाषा अधिनियम द्वितीय संसोधन बिल ( 2018 ) द्वारा खमतपूरी , राजबंशी भाषा को बिना संवैधानिक मान्यता राज्य की राजभाषा घोषित किया गया है ।
इन अधिनियमों व तथ्यों से यह स्थापित होता है कि हमारी राजस्थानी भाषा को राजभाषा घोषित किया जा सकता है। राज्य के राजस्थानी भाषा – भाषियों के हित में राजस्थानी भाषा को राज्य की राजभाषा बनाया जाना चाहिए।
राजस्थानी मोट्यार परिषद, बीकानेर के द्वारा रखी गई बैठक में रविवार को होने वाले पैदल मार्च की रूपरेखा तैयार करते समय परिषद के कैलाश जनागल, रामावतार उपाध्याय, भरतदान चारण, सुरेन्द्र सिंह, भावना, अनु, कल्पना, अजय कंवर सारदा विश्नोई, दिपक प्रजापत, राजुनाथ, मगराज, जगदीश, विशाल, कुलदीप सहित सभी सदस्य मौजूद रहें।