विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर। राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति में आज एक अनोखा मगर गहरा संवाद साहित्यकाओं, समीक्षकों और शिक्षकों के बीच एक पुस्तक प्रकाशन के तत्काल बाद हुआ। कथा और काव्य के शिल्पी होने के साथ समीक्षक की पैनी दृष्टि रखने वाले हेमंत शेष की पहल से यह रचनात्मक प्रयोग शिक्षा पर चिंतन के इस आंगन में हो सका।
स्थापित परिभाषाओं से इतर अपनी अलग-अलग शैलियों से विशिष्ठ पहचान वाली कहानियां रचने वाले तीन कथाकारों – अशोक आत्रेय, सुभाष दीपक और खुद हेमंत शेष – का हाल ही में जिस संयुक्त संग्रह ‘कथा-तरंग’ प्रकाशित हुआ है उसके विमोचन के मौके इन तीन कथाकारों ने अपनी एक-एक कहानी पढ़ी और उस पर बड़ी आत्मीयता मगर साफगोई से सुधि लोगों ने चर्चा की। इस चर्चा में इस अवसर पर पढ़ी गई तीन कहानियों पर टिप्पणियां तो थी हीं मगर वह उनसे भी आगे जाकर कहानी विधा पर ही जबरदस्त विमर्श भी बन गई।
चिंतक कवि कृष्ण कल्पित का मानना था कि मौजूदा कथा शिल्प और उसके परंपरागत ढांचे से असंतुष्टि इन लेखकों में मिलती है। कथा तरंग पुस्तक की हेमंत शेष की भूमिका ही समकालीन गद्य के प्रति नये वक्त की नई प्रस्तावना है। उनकी दिलचस्प स्थापना थी कि किताब पढ़ने का भी सौंदर्य होता है। गंभीर समीक्षक राजाराम भादू का चर्चा की सार्थकता को रेखांकित करते हुए कहना था कि कला एकांकित होती है फिर भी उसमें संवाद की स्थिति अंतर्निहित होती है।
साहित्यकार और समीक्षक दुर्गाप्रसाद अग्रवाल की मान्यता थी कि कथा संग्रह की कहानियां सीधी सपाट नहीं हैं और उनके अनेक पाठ संभव है। नये समय में लेखक ही नहीं पाठक भी बदला है। वह परंपराभंजक भी हुआ है। शिक्षक डॉ. संबोध गोस्वामी को कथा तरंग में एंटी स्टोरी दिखी तो अन्य शिक्षिका प्रणु शुक्ला का संग्रह को धरोहर बताते हुए कहना था कि लेखकों का सृजन स्वयंभू और लोकमंगलकारी होता है।
साहित्यकार प्रेमचंद गोस्वामी ने तीन लेखकों की कहानियों को फॉर्मेट तोड़ने वाली बताया जबकि लेखक रमेश खत्री का मानना था कि फॉर्मेट तोड़ती ये कहानियां पाठकों को खींचने वाली चुहेदानी न होकर उन्हें kula vistaar Dene वाली हैं वहीं कथाकार विजय तैलंग ने संग्रह में शामिल कहानियों को स्थापित मानदंडों को तोड़ने वाली बताया।
संग्रह कोअद्भुत लेखकों की रचनात्मकता की प्रस्तुति बताते हुए लेखक, समीक्षक और व्यंगकार फारूख आफरीदी को खेद था कि राष्ट्रीय स्तर पर राजस्थान के लेखकों का उचित मूल्यांकन नहीं हुआ है। पत्रकार, लेखक,प्रकाशक गजेंद्र रिज़वानी के अनुसार तो लेखक त्रयी तो एक प्रकार से कथा लेखन का विलक्षण घराना ही बन गया है।
फोटोग्राफी कला के चितेरे महेश स्वामी को भी पुस्तक में अद्भुत शिल्प नजर आया। कार्यक्रम की शुरुआत डागर घराने की ध्रुपद गायिका गायत्री शर्मा ने ध्रुपद शैली में सरस्वती की वंदना की। बहुविधाओं के गहरी दखल रखने वाले कथाकार कवि अशोक आत्रेय ने अपनी कहानियों को विचित्र बताते हुए सबका धन्यवाद किया। प्रभात गोस्वामी का कार्यक्रम का सुधि संचालन प्रभावी होना ही था।