सर-सर, सरासर महामंत्र ही हो गये हैं – ‘सर’ और ‘मेम’ : पढ़िए वरिष्ठ लेखक डॉ. दीपक आचार्य का यह व्यंग्य आलेख

विनय एक्सप्रेस, आलेख। सत्, त्रेता और द्वापर युग में चाहे कौनसे भी मंत्र तारक, उद्धारक और पालक रहे होंगे मगर इस कलियुग में दो ही शब्द महामंत्रराज की श्रेणी पा चुके है। भारतवर्ष के ठेठ देहात से लेकर दुनिया भर में रोजाना यदि किन्हीं शब्दों का सर्वाधिक उच्चारण होता है तो वह इन्हीं दो शब्दों का -सर व मेम। कई मर्तबा इनका रूपान्तरण सरजी या मेम साहब से लेकर इसी तरह की ध्वनियों के अनुरूप देश, काल व परिस्थितियों के लिहाज से बदलता रहना भी अब स्वाभाविक परम्परा में शुमार हो चला है।

डॉ. दीपक आचार्य : वरिष्ठ लेखक

गाँव की सरकार का दफ्तर हो, जिले का कोई सा महकमा, सीएमओ और पीएमओ से लेकर व्हाईट हाउस या यूएनओ, या दुनिया भर के तमाम सरकारी, अर्द्ध सरकारी और निजी दफ्तरों, कारोबार और तमाम प्रतिष्ठानों के हरेक बाड़े और गलियारे में इन्हीं शब्दों की गूँज दिन-रात बनी रहती है।

जमीन से लेकर आसमान तक ये शब्द इस कदर छाये हुए हैं कि ओजोन परत की तरह सर व मेम शब्दों की घनी चादर ही नहीं बल्कि मोटा और भारी कम्बल बन चुकी है। भगवान की तरह सर्वव्यापी होते जा रहे इन शब्दों ने सारी भौगोलिक, आकाशीय व स्थानिक परिधियों को समाप्त कर दिया है। पढ़े-लिखों और साहबों की संस्कृति का तो यह ब्रह्म मंत्र है ही, अनपढ़ों की जुबान भी इन शब्दों का श्रृद्धापूर्वक उच्चारण कर अपने आपको धन्य मानने लगी है।

हर चैम्बर से रोजाना ये आवाजें सैकड़ों बार सुनाई देती है, हर संबोधन या वार्तालाप की शुरूआत इसी से होनी है। बात परोक्ष हो, या अपरोक्ष हो या फोन-मोबाईल से, हर तरफ इन्हीं दो शब्दों का ही बोलबाला है। ढाई आखर प्र्रेम के और हैलो से भी अधिक वैश्विक व्यापकता कोई शब्द पा चुके हैं तो वह ये दो शब्द ही हैं। हैलो नपुंसक वर्ग का शब्द हो सकता है लेकिन आजकल पुरुषों की प्रसन्नता का मूलाधार यह ‘सर’ शब्द ही है जिसे सुनकर हर किसी पुरुष को अपने आपके परम पुरुष, महापुरुष या पुरुषोतम होने का सुकूनदायी बोध होने लगा है।

सर शब्द कान में पड़ते ही इनका पौरुष जागृतावस्था को प्राप्त होता है जैसे कि इन्हें जगाने और अस्तित्व का बोध कराने का ये कोई पासवर्ड ही हो। सर के सिवा दूसरे कोई संबोधन इनके सर पर जूँ नहीं रेंगा सकते, और सर कहने मात्र से सफाट फिसलनदार टाट पर जूँओं की कतारे स्केटिंग करते हुए लगातार सुकून का अहसास कराने लगती है।

यही स्थिति स्त्रियों की हो गई है। इन्हें बहनजी, माताजी, बिटिया, बहूरानी या और कुछ भी आत्मीय संबोधन दे डालो, कोई ध्यान नहीं देंगी। जैसे ही किसी ने मैम, मेडम या मेम साहब कह दिया, सारी सोच एक तरफ छोड़कर ध्यान धरना शुरू।

कहा गया है-अक्षर ब्रह्म है। फिर ये तो शब्द हैं। महाब्रह्म होंगे ही। इन शब्दों की महिमा का बखान करना अब किसी के बस में नहीं है। ये ब्रह्माण्ड के सर्वोच्च शिखर से लेकर पाताल की जड़ तक पसर चुके हैं।

फिर सार्वजनीन आनन्द इतना कि सुनते ही हर किसी को बोध होने लगता है कि वह बहुत बड़ा हो गया है। इसी अहंकार ने खूब सारे लोगों को ऎसा खजूर बना डाला है कि अब ये किसी काम के नहीं रहे। इसी प्रतीक्षा में पड़े हैं कि कोई त्रिशंकु जब आसमान में कोई बस्ती बनाएगा तब उन्हें कोई न कोई ओहदा जरूर प्राप्त होगा ही।

आदमियों को सर और महिलाओं को मेम शब्द सुनने मात्र से नई ऊर्जा, अपार स्फूर्ति, ताजगी और अवर्णनीय सुख का गद्गद् कर देने वाला अहसास होने लगता है। इन्हीं दो मंत्रों के सहारे पूरा का पूरा राज-काज चल रहा है, लाखों-करोड़ों लोग अपने आपको कुछ न कुछ मान या मनवा बैठे हैं।

अचूक प्रभाव वाले इन मंत्रों का प्रयोग हम में से हर कोई करता ही रहा है। आयन्दा कोई चन्द्र या सूर्य ग्रहण पड़े तो इन दोनों मंत्रों की कम से कम 2-2 माला जरूर जप लें, ऎसा सिद्ध हो जाएगा कि कोई काम कभी नहीं रुकने वाला। देवताओं को खुश करने में टाईम वेस्ट करने की बजाय उन्हें खुश रखो जो हमारे किसी न किसी काम आने वाले प्रत्यक्ष देवता हैं। बात दो शब्दों का श्रृद्धा व प्रेम के साथ उच्चारण करने की ही है, चमत्कार मुँह बोलता नजर आएगा।

सर-सर करते रहें, मैम-मैडम, मेम साहब कहकर श्रृद्धा जताते रहें, धरती के ये देवता महामंत्र का श्रृद्धापूर्वक सर झुकाकर नमन करने मात्र से प्रसन्न होने वाले हैं। काबिल हैं उन्हें भी कहिए, नाकाबिल हैं उन्हें भी। मंत्र रामबाण है, हर किसी को जागृत कर ‘अहं ब्रह्मास्मि’ के भाव भरने वाला है। सर-सर कहते रहेंगे तो भला होगा, परहेज रखेंगे तो सरासर बुरा। आजमाएं और अपने काम निकालें। प्रतिभाहीन निकम्मों, नुगरे-नालायकों और कामचोरों के लिए तो ये शब्द अचूक औषधि और अमृत संजीवनी का प्रभाव दिखाते हैं। काम कुछ मत करो, सर-सर, मैम-मैम, जी-जी करते रहो, अपने आप टाईम पास हो जाएगा। वे भी खुश और हम भी।

इन मंत्रों को जो अपना रहे हैं वे और अधिक बार बोलने व सुनाने का अभ्यास करें। जो अब तक हिचक रहे हैं वे इसे अपनाएं। दुनिया के सारे आनन्द पाने, काम निकलवाने और बड़ी ही चतुराई से टाईम पास कर लेने के ऎसे मंत्र न हुए हैं न होंगे। पीछे न रहें, जो आजमाये सो निहाल। ये है सर-मैम का करिश्माई मायाजाल।

– डॉ. दीपक आचार्य
9413306077