मां की ऊर्जा, पुत्री की सेवा व चिकित्सकों का समर्पण

मौलासर में देखने को मिला सामाजिक सरोकार का संदेश

57 वर्षीय महिला ने दी कोरोना को मात

विनय एक्सप्रेस समाचार,नागौर। खम ठोक ठेलता है जब नर, पर्वत के जाते पांव उखड़।मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है।
किसी प्रसिद्ध कवि की यह काव्य पंक्तियां जनमानस में भी देखने को मिलती है। मौलासर पंचायत समिति की जुझारू मातृशक्ति विमला देवी ने भी कोरोना को हराकर ऐसा करके दिखाया है। मौलासर पंचायत समिति के गांव डाकीपुरा की मूल निवासी 57 वर्षीय विमला देवी को कोरोना से संक्रमित होने पर 1 मई को सी.के. बिरला हॉस्पिटल, जयपुर में भर्ती करवाया गया था। बाद में महिला को मौलासर स्थित राजकीय सामुदायिक अस्पताल में उपचार के लिए लाया गया। महिला मरीज का ऑक्सीजन लेवल 55 तक चला गया, जो शरीर में सामान्य स्थिति 94 के मुकाबले अत्यधिक गंभीर स्थिति को व्यक्त करता है। इसी प्रकार सीटी स्कोर भी 19 पाया गया, जो फेफड़े में 75 प्रतिशत संक्रमण की दशा को बताता है। विमला देवी को 23 मई को स्वस्थ होने पर मौलासर अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया।
जोधपुर में सीएचओ के नवनियुक्त पद पर कार्यरत उनकी पुत्री सुनीता बताती है कि उनकी माता विमला देवी के मन का जोश इस स्थिति में कभी भी कम नहीं हुआ। कोरोना से संक्रमित होने वाले मरीजों के लिए यही सबसे महत्वपूर्ण पक्ष होता है। साथ ही मौलासर अस्पताल के चिकित्सक डॉ. फारूक व अन्य स्टाफ का व्यवहार बहुत अच्छा रहा। यहां का माहौल सकारात्मक है, जो किसी भी स्थिति में मरीज के मन में निराशा के भाव को नहीं आने देता है। पंचायत समिति मौलासर के भामाशाह व स्वयंसेवी संस्था, संगठनों के माध्यम से अस्पताल के मरीजों के लिए गुणवत्तापूर्ण भोजन का प्रबंध किया गया। मरीज की आवश्यकता, सुविधा व उनकी मांग के अनुसार ही भोजन, पानी ज्यूस, फल आदि उपलब्ध करवाया जाता है। यह सेवा व सहयोग मरीज के परिजन को व्यवस्था पक्ष की दृष्टि से चिंता से भी मुक्त रखता है जो आशा का संचार करने के लिए पर्याप्त है। चिकित्सा विभाग में कार्यरत पुत्री द्वारा फेफड़े को पुनः क्रियाशील व पुष्ट करने के लिए आवश्यक कार्य के साथ-साथ फिजियोथैरेपी भी प्रतिदिन दी जाती थी। साथ ही इस स्टीम तथा नेबुलाइजेशन द्वारा भी चिकित्सा की जाती थी। वहीं आहारचर्या में प्रतिदिन तरल पदार्थ, दूध व प्रोटीन पाउडर का प्रयोग करवाया जाता था। गंभीर स्थिति के कारण विमला देवी के चलने फिरने की असमर्थता के कारण प्राणायाम, योग अधिक नहीं हो पाता था। लेकिन माता के जोश, ऊर्जा, पुत्री की सेवा शुश्रूषा व चिकित्सकीय परिवार के समर्पण व आत्मीय भाव से विमला देवी अब अपने परिवारजनों के साथ प्रसन्नचित्त है। परिजनों द्वारा मरीज के डिस्चार्ज होने पर इस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के निमित्त स्वेच्छा से अंशदान भी किया गया।

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