क्या सपने अपनी हैसियत में रहकर देखने चाहिए ? पढ़िए भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी नवीन जैन का यह विशेष आलेख

विनय एक्सप्रेस आलेख, नवीन जैन। युवाओं के बीच में या किसी स्कूल या महाविद्यालय में जब भी हम लोगों को करियर के लिए मोटिवेट कर रहे होते हैं तो अक्सर सपनों के बारे में भी बात होना शुरू हो जाती है और हम उनसे पूछते हैं कि आप लोगों ने भी अपनी जिंदगी में कोई ना कोई सपने जरूर देखे होंगे I प्राय किसी भी सेमिनार में या लेक्चर के दौरान आप सामने बैठे हुए लोगों से जब भी उनके द्वारा बचपन में देखे हुए सपनों के संबंध में बात करते हैं तो वह प्रकार का नॉस्टैल्जिया भी फील करते होंगे और उनके मन में तरह-तरह के विचार और पुरानी यादें भी उमड़ती होंगी I वैसे तो हम सब में भी कोई इंसान ऐसा होना संभव नहीं है, जिसने बचपन में सपने नहीं देखे हो I हम सब के साथ ऐसा भी हुआ है कि जैसे जैसे हम बड़े होते गए हैं, अपनी परिस्थितियों के हिसाब से वह सपने भी बदलते जाते हैं I

नवीन जैन : लेखक, मोटिवेशनल स्पीकर एवं भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी

बचपन में सांसारिक बातों से बेखबर होने के कारण हम लोग कोई भी सपने देख सकते हैं क्योंकि उस वक्त हम लोग हमारे आसपास की परिस्थितियों अथवा पारिवारिक/आर्थिक/ सामाजिक स्थितियों के हिसाब से नहीं सोचते हैं; बल्कि जो चीज हमें सबसे ज्यादा आकर्षित करती है, उस चीज के साथ हम खुद को इमेजिन करने लगते हैं और उसके इर्द-गिर्द अपने जीवन का कुछ ना कुछ हिस्सा जोड़ लेते हैं I आप जानते ही हैं कि गांव और कस्बे के बच्चों ने कभी हवाई जहाज या हवाई अड्डा थोड़ी देखा होता है लेकिन ज्यादातर बच्चे बचपन में यह सपना देख लेते हैं कि वे बड़े होकर पायलट बनना चाहेंगे I केवल अपने घर के ऊपर से गुजरते हुए हवाई जहाज को देखकर ही उनके मन में तरह-तरह की फैंटेसी आने लगती है और वही उनके मन में सपने पैदा करती है I समय के साथ जब यही बच्चे स्कूल में जाते हैं और ज्यादा बड़ी शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते हैं या परिवार की प्रतिकूल आर्थिक या अन्य सिचुएशन की वजह से अपने जीवन में एडजस्टमेंट करना सीख जाते हैं तो अपने सपनों को भी थोड़ा थोड़ा व्यवहारिकता की तरफ ले जाना आरंभ कर देते हैं I यही परिवर्तन अब उस बच्चे को एक बस का ड्राइवर या कंडक्टर बनने के सपने की तरफ भी ले जा सकता है जो बच्चा कुछ साल पहले तक अपने आप को एक हवाई जहाज के पायलट के रूप में सोच रहा होता है I

कुछ भी हो सपने हम सबके साथ रहते हैं लेकिन हम में से कुछ लोग उन सपनों को बहुत गंभीरता के साथ लेते हैं और उनके साथ जीते हैं और उन्हीं के साथ अपने जीवन के सभी कदम आगे बढ़ाते हैं और जितनी ज्यादा दोस्ती हम अपने सपनों के साथ निभाते हैं वह भी हमारे साथ कदमताल मिलाते हुए आगे बढ़ाने में हमें मदद करते हैं I जीवन की जटिलताओं की वजह से या अपने आसपास के लोगों के व्यवहार की वजह से कई बार हमारे सपने धूमिल होने लगते हैं और बहुत जल्दी हम अपनी आशाएं खोने लगते हैं और उस वजह से धीरे-धीरे हमारे सपने खुद हमारे नहीं रहते हैं और हम उनका नहीं चाहते हुए भी परित्याग कर देते हैं और अगर हम उन का परित्याग कर देते हैं तो फिर वह भी हमारे साथ वफा नहीं कर पाते हैं I बहुत सारे लोग अपनी किस्मत को दोषी मान लेते हैं कि वे काफी कैपेबल थे परंतु उनको अपनी कैपेसिटी के हिसाब से सपने पूरे करने के अवसर नहीं मिले हैं और कुछ लोग मान भी लेते हैं कि अगर उन्होंने सही समय पर सही कदम उठाए होते तो शायद आज वह अपने सपनों के बहुत नजदीक हो सकते थे I बहुत सारे लोग इन दोनों स्थितियों के बीच में होते हैं जो कहीं ना कहीं किस्मत को भी दोषी मानते हैं और कुछ-कुछ अपने प्रयासों की कमी को भी स्वीकार कर लेते हैं I हम सब लोग खुद को एक हालात के शिकार के रूप में देखना पसंद करते हैं और बड़ा दिल रखते हुए अपनी गलतियों को मानने के लिए प्राय कम ही तैयार हो पाते हैं I हमारी एक मानवीय टेंडेंसी भी होती है कि हम पर आए अपने साथ वालों के आगे बढ़ने पर उनको लकी मानते हैं और खुद को अनलकी मानते हैं और उनके द्वारा किए गए प्रयासों के लिए उनको क्रेडिट देने में थोड़ा कंजूसी ही रहती है I

हमारी जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए सपने क्यों महत्वपूर्ण हैं इसके संबंध में मैं प्राय एक कहानी हर जगह सुनाया करता हूं I कहानी देखने में बहुत सिंपल है लेकिन इसका मतलब होत गहरा है I एक बार स्कूल जाने वाले एक बच्चे के पिता किसी घोड़ों के फार्म पर काम किया करते थे और वह बच्चा भी छुट्टी के दिन अपने पिता के साथ इस फार्म पर चला जाता था I बच्चे को इस बात का एहसास था कि उसके पिता इस फार्म पर एक मजदूर के तौर पर साफ सफाई का काम करते हैं लेकिन उसे घोड़ों के साथ रहना अच्छा लगता था I स्कूल में एक दिन उसे होमवर्क मिला जिसमें उसे यह बताना था कि बड़ा होने के बाद वह अपने जीवन में किस प्रकार का कार्य करना चाहता है I इस प्रोजेक्ट को बच्चे ने बहुत ही गंभीरता से लिया और उसने 7 पेज का एक बड़ा सा निबंध लिख डाला कि वह बड़ा होकर एक बहुत बड़े घोड़ा फार्म का मालिक बनना चाहता है I उसने अपने इस सपने को बखूबी लिखा कि मानो उसने अपना दिल कागज पर उतार दिया I उसने अपना होमवर्क अपने अध्यापक को दिया और अध्यापक ने बहुत बुरे रिमार्क के साथ यह काम बच्चे को वापस लौटा दिया और उसे ठीक कर के वापस सबमिट करने को बोला I अध्यापक ने यह तक कह दिया था कि तुम्हारी फैमिली बैकग्राउंड को देखते हुए तुम्हारा यह सपना कुछ ज्यादा ही बड़ा लग रहा है I अपनी हैसियत के हिसाब से सपना देखना ही ठीक रहता है I वह बच्चा बहुत दुखी होकर घर पहुंचकर अपने पिता से मिला और सारी बात बताई I बच्चे के पिता ने कह दिया कि इसका निर्णय तुम्हें ही करना है क्योंकि यह तुम्हारी जिंदगी से संबंधित है I बच्चे ने अपने मन में कुछ सोच लिया और अगले दिन वही होमवर्क, वही सपना अपने अध्यापक के सामने वापस रख दिया I अध्यापक बहुत गुस्सा हो गए और बोले कि तुमने इसमें कोई भी परिवर्तन करना उचित नहीं समझा है तो अध्यापक की बात सुनकर छोटे बच्चे ने जो जवाब दिया वह भी हम सबको सपनों की वैल्यू के संबंध में बहुत कुछ बता देगा I उसने कहा – टीचर, आप अपना रिमार्क रख लीजिए, मैं मेरा सपना रख लेता हूं I

जिंदगी में बहुत बार हम लोगों ने इसी प्रकार के समझौते किए हैं और दूसरों की कही बात को ज्यादा सही साबित करने के लिए अपने खुद के सपनों को गलत मान लिया है I हम लोगों ने अपने सपनों को पूरा करने के लिए हमेशा प्रयास किए होते हैं लेकिन फिर भी अगर किसी वजह से उन तक पहुंचने में कोई बाधा जाती है तो हम बहुत जल्दी हताश हो जाते हैं I ऐसे में हमारे जीवन में हमेशा निंदा करने वाले और हमें हतोत्साहित करने वाले लोग हमें घेर लेते हैं और धीरे-धीरे हमारे मन में यह बिठा देते हैं कि हमने ही गलत सपना देख लिया था I मैं एक बात हमेशा कहता हूं कि कभी भी इस बात को स्वीकार मत करिए कि सपने हैसियत में रहकर देखे जाते हैं; क्योंकि मेरा मानना है कि हैसियत बढ़ाने के लिए ही सपने देखे जाते हैं I संजय लीला भंसाली की एक फिल्म 1997 में आई थी और इस फिल्म का नाम था खामोशी और इस फिल्म की टाइमलाइन मुझे याद आती है – वो जिंदगी ही क्या जिसमे कोई नामुमकिन सपना ना हो I समय के साथ थोड़ा सा भी हमारे हिसाब से चीजें घटित नहीं होती है तो हम बहुत जल्दी मन को गिरा लेते हैं और फिर नकारात्मकता अपना घर बना लेती है और सफलता हमसे कोसों दूर रहने लगती है

मैं अक्सर अपने सपनों से जुड़े हुए किसी भी संवाद के दौरान एक फिल्म का जिक्र करता हूं – दी स्विमर्स I इस बेहद संवेदनशील मूवी में दिखाया गया है कि किस प्रकार आतंक से बुरी तरह तबाह हो चुके सीरिया देश में रहने वाली दो बहने अपने देश में हालात खराब होने के बाद अपने सबसे बड़े सपने स्विमिंग प्रतियोगिता में अगले ओलंपिक में भाग लेना और देश के लिये मेडल जीतना – को ही छोड़ने का सोचने लगती हैं और उनके कोच जो उनके पिता ही होते हैं उनकी इस हालत को देखकर मजबूर महसूस करने लगते हैं और यह कोशिश करते हैं कि किसी प्रकार से इन हालात में भी उनकी बेटियां अपने करियर को आगे बढ़ा सकें। जिस स्टेडियम में यह लड़कियां अपने पिता के साथ स्विमिंग की प्रैक्टिस कर रही होती है जब वहां पर ही बम धमाका हो जाता है तो उनके मन पर पड़ने वाले असर को फिल्म में बखूबी दिखाया गया है कि अपने सपने को पूरा करने में जी-जान से जुटे हुए इन्सान को कितना बुरा लगता है जब पता चलता है कि आपका मुकाबला इंसानों से नहीं बल्कि उस प्रकार के हैवानों से भी हो सकता है, जिनका आपने इस जीवन में कुछ बिगाड़ा ही नहीं है और जिन का रास्ता आपने कभी काटा ही नहीं था । क्या त्रासदी में सपने देखना गुनाह है या ऐसे सपने कभी अपने अंजाम तक नहीं पहुचते हैं। अगर आप लोग सपनों की असली उड़ान के बारे में जानना ही चाहते हैं तो 2016 के रियो ओलम्पिक्स में यूसरा मर्दिनी के स्विमिंग में परफोरमेंस के बारे में सर्च करिये। रिफ्यूजी होने के बावजूद और सब तरह की चुनौतियों से दो-चार होने के बाद भी सिर्फ अपने हौसले और पॉजिटिव रवैये से दुनिया में नाम कमाया जा सकता है और लाखों लोगों को मोटिवेट किया जा सकता है।

टैलेंटेड बच्चे संकटग्रस्त परिस्थितियों और तमाम प्रकार की आफत झेल रहे परिवारों और यहां तक कि हर प्रकार के रसातल में चले गए देशों जैसे कि अफगानिस्तान और सोमालिया में भी पैदा होते होंगे और उन बच्चों के भी उसी प्रकार के सपने होते होंगे, जिस प्रकार के सपने हमारे अपने बच्चे देखते हैं। उनका मन भी करता होगा कि वे अपने देश को या समाज को – नहीं तो कम से कम अपने परिवार को आगे बढ़ाने के लिए प्रयास करें परंतु क्या हर किसी को इस प्रकार के विकल्प जीवन में मिल पाते हैं। जहां पर अपने खुद के जीवन को बचाना ही सबसे बड़ी मशक्कत हो, वहां पर दूसरों के आराम के लिए जीने की सोचने का विचार तो दिमाग में आता ही नहीं होगा। मेरे हिसाब से यह मानव की सबसे बड़ी त्रासदी है कि कितना बड़ा मानव संसाधन आज अपने आप को केवल जीने के संघर्ष से ही निकालने की जद्दोजहद में जुटा हुआ है जबकि उनमें से कितने ही लोग बहुत ज्यादा प्रोडक्टिव हो सकते हैं -खिलाड़ी के रूप में, कलाकारों के रूप में और ना जाने किस-किस रूप में। परंतु हमारे विश्व में अनेक जगहों पर जिस प्रकार के हालात हैं, उसमें उन्हें इस प्रकार के अवसर मिल ही नहीं पाते हैं I

इन सब बातों पर मनन करने के बाद क्या हमारे दिमाग में यह बात बिल्कुल स्पष्ट नहीं हो जानी चाहिए थी कि हम तो और बहुत सारे लोगों के मुकाबले बहुत ही अच्छी स्थितियों में रह रहे हैं I हमारे पास अपने सपनों को पूरा करने के लिए उनके मुकाबले में कहीं ज्यादा अच्छे अवसर हैं जो पूर्णतया संकटग्रस्त देशों में या परिवारों में आधारभूत सुविधाओं के लिए ही अपना पूरा समय और ऊर्जा खर्च कर रहे होते हैं I अपने मोटिवेशनल लेक्चर के दौरान मैं मजाक के अंदाज में युवाओं से यह भी कहा करता हूं कि जरा तलाश करिए, आप लोगों के सपने कहां छूट गए हैं ; कहीं यह किसी बस की सीट पर तो नहीं रह गए हैं या किसी ट्रेन में रखे तो नहीं रह गए I किसी कोचिंग संस्था की सीढ़ियों में तो नहीं गिर गए हैं या फिर फोटोस्टेट की दुकान पर गलती से रह तो नहीं गए I एक सीधी सी बात तो आपकी समझ में आ ही जाएगी और वह यह है कि अगर आप जीवन में चाहते हैं कि आपकी लॉटरी निकल जाए तो आपको उसके लिए सबसे पहले जाकर लॉटरी का टिकट खरीदना पड़ता है I हम सब जानते हैं कि बिना टिकट खरीदे, जब इनाम का ऑफर आता है, तो वह तो धोखा ही होता है I सपने हमारी सफलता की लॉटरी का टिकट है, यह बात समझ में आ गई होगी I

तो आइए आज से ही यह तय कर लेते हैं कि हम अपने सपनों को पूरा करने के लिए अपनी पूरी ऊर्जा को लगा देंगे और अगर हमने अपने सपनों को सब कुछ दे दिया तो विश्वास रखिए – सपने भी हमें सब कुछ दे देंगे I

 

नवीन जैन : लेखक भारतीय प्रशासनिक सेवा  के वरिष्ठ अधिकारी है एवं वर्तमान में प्रारंभिक शिक्षा विभाग राजस्थान के शासन सचिव है.