विनय एक्सप्रेस गणेश चतुर्थी विशेष आलेख- मनोज व्यास। गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व देवों में देव महादेव के सुपुत्र सिद्धि विनायक भगवान गणेश को समर्पित है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था, इसलिए इस पर्व को बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन विघ्नहर्ता भगवान गणेश की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है।
ऐसी मान्यता है कि गणेश जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी को मध्याह्र काल में स्वाति नक्षत्र और सिंह लग्न में हुआ था.इस हिसाब से इस साल गणेश जन्मोत्सव 31 अगस्त को मनाया जाएगा.हिंदू धर्म में भगवान गणेश को विद्या,बुद्धि,विघ्नहर्ता, विनाशक, मंगलकारी,सिद्धिदायक और समृद्धिदाता के रूप में पूजा की जाती है. किसी भी तरह की पूजा या अनुष्ठान में सबसे पहले गणपति पूजा का विधान है.धार्मिक मान्यता के अनुसार यदि घर या दुकान में विधि-विधान से गणेश जी की प्रतिमा को स्थापित किया जाए तो घर में सुख-समृद्धि का वास हमेशा बना रहता है.
गणेश चतुर्थी 2022 : शुभ मुहूर्त
गणेश चतुर्थी : बुधवार, 31 अगस्त 2022
गणपति प्रतिमा की स्थापना का मुहूर्त : 31 अगस्त सुबह 11.05 बजे से दोपहर 1.38 बजे तक
मध्याह्न गणेश पूजा मुहूर्त : सुबह 11:05 बजे से दोपहर 01:38 बजे तक (अवधि- 2 घंटे, 33 मिनट)
गणेश विसर्जन तिथि: शुक्रवार, 9 सितंबर 2022
चंद्र दर्शन से बचने का समय : 30 अगस्त दोपहर 03:33 बजे से रात 08:40 बजे तक
चन्द्र दर्शन दोष निवारण मन्त्र:
सिंहःप्रसेनमवधीत् , सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीस्तव, ह्येष स्यमन्तकः।।
गणेश चतुर्थी का महत्व एवं पूजन विधि
मान्यता है कि भगवान गणेश का जन्म दोपहर के आसपास हुआ था, इसलिए गणेश चतुर्थी मनाने का शुभ मुहूर्त दोपहर के आसपास ही होता है। गणेश चतुर्थी 2022 की बात करें तो वैदिक ज्योतिष के अनुसार, शुभ मुहूर्त 11 बजे से लेकर दोपहर के 1 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। हालांकि शुभ मुहूर्त इस बात पर निर्भर करता है कि आप भारत में किस जगह हैं।
गणेश उत्सव के दौरान, प्रतिदिन शाम को भगवान गणेश की आरती की जाती है। फिर अनंत चतुर्दशी के दिन सभी मूर्तियों को विधिवत पूजा करने के बाद, उनके यथास्थान से हटाकर ढोल-नंगाड़ों के साथ विसर्जन के लिए ले जाया जाता है। विसर्जन की प्रक्रिया सार्वजनिक तौर पर बड़े ही धूमधाम से पूर्ण की जाती है। हालांकि जो लोग अपने घरों में ही मूर्ति स्थापना करते हैं, वे लोग आमतौर पर काफ़ी पहले गणपति विसर्जन कर देते हैं। बता दें कि गणेश चतुर्थी के डेढ़, तीन, पांच या सात दिन के बाद से ही विसर्जन शुरू हो जाते हैं। अब बात करें महाराष्ट्र की, जहां यह उत्सव बड़े पैमाने पर मनाया जाता है, वहां के कई भक्तगण गणेश जी की प्रसिद्ध मूर्तियों के विसर्जन में शामिल होना पसंद करते हैं।
गणेश चतुर्थी व्रत की कथा: वैसे तो गणेश चतुर्थी को लेकर बहुत सी कथायें प्रचलित हैं, लेकिन मैं यहां वह कथा बता रहा हूं जो सर्वाधिक प्रचलित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार की बात है कि सभी देवताओं को एक साथ कई विपत्तियों से जूझना पड़ रहा था। अपनी विपत्तियों से छुटकारा पाने के लिये सभी देवता मदद मांगने के लिये भगवान् महादेव के पास पहुंचे और उनसे सहायता मांगी। जब सभी देवता भगवान् महादेव के पास पहुंचे उस समय शिवजी के दोनों पुत्र गणेश और कार्तिकेय भी वहीं पर बैठे हुए थे। देवताओं की आपदा की बात सुनकर शिव जी ने अपने दोनों पुत्रों से पूछा कि तुम दोनों में से कौन इन देवों की विपत्ति को हल कर सकता है। अपने पिता की बात सुनकर दोनों ने ही कहा कि हम दोनों की यह काम कर सकते हैं। भगवान् शंकर ने अपने दोनों पुत्रों का सामर्थ्य जानने के लिये उनसे कहा कि तुम दोनों में से जो भी सबसे पहले इस पृथ्वी की परिक्रमा करके जल्दी वापस आ जायेगा, वही देवताओं के इस कार्य को करेगा। अपने पिता का आदेश सुनकर कार्तिकेय ने अपने वाहन मोर को बुलाया और उस पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए वहां से चल पड़े। लेकिन भगवान शिव के दूसरे पुत्र गणेश ने सोचा कि यदि मैं चूहे के उपर चढ़ कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करने निकल जाऊंगा तो पता नहीं कब तक लौटूंगा। तभी उनके मन में विचार आया और उन्होंने तुरंत ही वहाँ से उठकर अपने माता पिता की सात बार परिक्रमा की और वापस वहीं पर बैठ गए। कुछ समय बाद कार्तिकेय भी पृथ्वी की परिक्रमा पूरी करके वहां पहुंच गये। तो उन्होंने अपने पिता से कहा कि मैं पृथ्वी की परिक्रमा पूरी कर के वापस आ गया हूं इसलिये देवताओं के इस कार्य को करने का यह अवसर मुझे ही मिलना चाहिए। कार्तिकेय की बात सुनकर शिवजी ने अपने पुत्र गणेश से पूछा कि तुम पृथ्वी की परिक्रमा करने क्यों नहीं गये। पिता की बात सुनकर गणेशजी ने कहा मेरे माता पिता के चरणों में ही तीनों लोक हैं, इसलिए पृथ्वी की परिक्रमा करने की बजाय मैंने अपने माता पिता की परिक्रमा करके ही तीनों लोगों की परिक्रमा पूरी कर ली है, इसलिए यह अवसर मुझे दिया जाना चाहिए। अपने पुत्र गणेश का यह उत्तर सुनकर भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने उन्हें वरदान दिया कि चतुर्थी के दिन जो भी तुम्हारा पूजन करेगा उसके सभी प्रकार के दुख समाप्त हो जाएंगे और वो जीवन में सभी भौतिक सुखों को प्राप्त करेगा। उसी दिन से प्रत्येक मास की चतुर्थी के दिन भगवान गणेश के पूजन की परंपरा प्रारंभ हो गई।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती स्नान करने के लिए जा रही थीं। तभी उन्होंने अपने शरीर के मैल से एक पुतले का निर्माण किया और उसमें जान डाली, फिर उसे द्वारपाल के रूप में नियुक्त किया तथा आदेश दिया कि वह उनके घर की रक्षा करेगा। द्वारपाल की भूमिका में और कोई नहीं बल्कि भगवान गणेश थे।
उस दिन जब भगवान शिव घर में प्रवेश करने लगे तो गणेश जी ने उन्हें रोका। इस पर महादेव क्रोधित हो गए और युध्द में उनका मस्तक धड़ से अलग कर दिया। माता पार्वती को जब यह बात पता चली तो वो दुःख के मारे रोने लगीं।
उनको प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने गज यानी कि हाथी के सिर को धड़ से जोड़ दिया इसलिए भगवान गणेश को गजानन भी कहा जाता है। तब से इस दिन को भगवान गणेश के जन्मदिन के रूप में मनाया जाने लगा।
सवाल यह है कि गणपति विसर्जन अनंत चतुर्दशी के दिन क्यों किया जाता है। यह दिन ख़ास क्यों माना जाता है? संस्कृत में अनंत का अर्थ होता है, अमरता, अनंत ऊर्जा या अनंत जीवन। इसलिए इस दिन भगवान विष्णु के स्वरूप भगवान अनंत की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान अनंत ने सृष्टि के निर्माण के समय चौदह लोकों तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुवः, स्वः, जन, तप, सत्य, मह की रचना की थी। अनंत चतुर्दर्शी भाद्रपद माह के चौदहवें दिन यानी कि चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है, जब चाँद आधा दिखाई देता है।
मान्यता है कि इस दिन चंद्र दर्शन नहीं करना चाहिए। कहा जाता है कि इस दिन जो व्यक्ति चंद्रमा को देखता है, उसे चोरी जैसे कलंक का भागी होना पड़ता है। अगर ग़लती से चंद्र दर्शन हो जाए तो नीचे दिए गए मंत्र का 28, 54 या 108 बार जाप करें। अथवा श्रीमद्भागवत के दसवें स्कन्द के 57वें अध्याय का पाठ करें। ऐसे करने से जातक को चंद्र दर्शन दोष से मुक्ति मिलती है।
चन्द्र दर्शन दोष निवारण मन्त्र:
सिंहःप्रसेनमवधीत् , सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीस्तव, ह्येष स्यमन्तकः।।