सूंपती रैयी है, अलेखूं बरसा सूं/मानखै नैं चेतौ/बैंवती नदी कै/थिर थार नदी : कमल रंगा

नदी’ पर केन्द्रित काव्य रंगत-शब्द संगत की पांचवीं कड़ी सम्पन्न हुई

विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर।प्रज्ञालय संस्थान एवं राजस्थानी युवक लेखक संघ द्वारा अपनी मासिक साहित्यिक नवाचार के तहत प्रकृति पर केंद्रित काव्य रंग-शब्द संगत की पांचवीं कड़ी नत्थूसर गेट बाहर स्थित लक्ष्मीनारायण रंगा सृजन सदन में आयोजित की गई।
अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार कमल रंगा ने कहा कि कविता करना एक चुनौतीपूर्ण सृजनात्मक उपक्रम है। जिसके तहत ही प्रकृति के विभिन्न आयामों को केंद्र में रखकर हिन्दी, उर्दू एवं राजस्थानी के विशेष आमंत्रित कवि-शायरों ने आज ‘नदी’ के विभिन्न पक्षों को उकेरते हुए काव्य रस धारा से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। कविता, गीत, गजल, हाइकू एवं दोहों से सरोबार इस काव्य रंगत में शब्द की शानदार संगत रही।
मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार राजेंद्र जोशी ने कहा कि ऐसे आयोजनों के माध्यम से नवाचार के साथ-साथ नव रचना वाचन होता है जिससे नगर की काव्य परम्परा को समृद्ध करने का एक सफल उपक्रम होता है। जिसके लिए आयोजक एवं संस्था साधुवाद की पात्र है। ऐसे आयोजन होना नगर के साहित्यिक वातावरण को स्वस्थ करता है।
कार्यक्रम में काव्य पाठ करते हुए वरिष्ठ कवि कमल रंगा ने अपनी कविता-‘बण‘र गूंज री अणगूंज/सूंपती रैयी है, अलेखूं बरसा सूं/मानखै नैं चेतौ/बैंवती नदी कै/थिर थार नदी….’के माध्यम से नदी के मानवीय करण एवं विभिन्न पक्षों को रेखांकित किया। तो कवि राजेंद्र जोशी ने अपनी नदी पर कविता की सशक्त प्रस्तुति देते हुए नदी की पीड़ा को साझा किया।
वरिष्ठ शायर जाकिर अदीब ने अपनी ताजा गजल के उम्दा शेर-कैसे करेगी मेरी तिशनगी नदी/जुलमतो को दूर करती है नदी…कविता के माध्यम से जीवन के विभिन्न पहलूओं को उजागर किया। तो वरिष्ठ कवयित्री इन्द्रा व्यास ने ‘नदी जन-जन की प्यास बुझाती/जात-पात का भेद मिटाती’ पेश कर नदी के एक अलग रंग को सामने रखा। कवि डॉ. शंकरलाल स्वामी ने अपनी छंद की लयबद्ध कविता सुनाते हुए नदी की लय को बिखेरा। इसी क्रम में वरिष्ठ कवि जुगल किशोर पुरोहित ने अपने गीत के माध्यम से ‘नदी है तो संसार में जन्नत है’ पेश की। वहीं कवि विप्लव व्यास ने ‘नेह से भरी है नदी/लेकिन एक नदी अपनायत री…’ के माध्यम से नदी को अलग ढंग से व्याख्यित किया।
कवि गिरीराज पारीक ने अपनी नवीन कविता ‘जीवन दात्री है नदी/अन्न, औषधी उगाती है नदी…’ के माध्यम से नदी के उपयोग को रेखांकित किया। कवि शकूर बीकाणवी ने अपने गीत के माध्यम से नदी के विभिन्न रूपों को रूपायित किया। वहीं कवि ऋषि कुमार तंवर ने नदी के उदगम और उसके विभिन्न पक्षों को जीवन से जोड़ा। युवा कवि यशस्वी हर्ष ने ‘नदी से नदी तक’ कविता पेश कर साझा संस्कृति को भी उकेरा।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में संस्था के राजेश रंगा ने स्वागत करते हुए बताया कि प्रज्ञालय संस्था गत साढ़े चार दशकों से भी अधिक समय से साहित्य, कला, संस्कृति आदि के क्षेत्र में गैर अनुदानित संस्था के रूप में अपने स्वयं के संसाधनों पर नवाचार एवं आयोजन करती रही है।
कार्यक्रम में पुनीत कुमार रंगा, हरिनारायण आचार्य, अशोक शर्मा, नवनीत व्यास, सुनील व्यास, घनश्याम ओझा, तोलाराम सहारण, भवानी सिंह, अख्तर, कन्हैयालाल पंवार, बसंत सांखला आदि ने काव्य रंगत-शब्द संगत की रसभरी इस काव्य धारा से सरोबार होते हुए हिन्दी के सौन्दर्य, उर्दू के मिठास एवं राजस्थानी की मठोठ से आनंदित हो गए।
कार्यक्रम के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए वरिष्ठ इतिहासविदï् डॉ. फारूक चौहान ने बताया कि अगली कड़ी ‘नवंबर माह में पहाड़’ पर केन्द्रित होगी एवं १२ कडिय़ा पूर्ण होने पर रचनाओं का चयन उपरान्त पुस्तक आकार में प्रकाशन प्रज्ञालय संस्थान कराएगा।
कार्यक्रम का सफल संचालन युवा कवि गिरिराज पारीक ने करते हुए आयोजन के महत्व को भी रेखांकित किया एवं सभी का आभार डॉ. फारूक चौहान ने ज्ञापित किया।