फसलों को भारी नुकसान पहुंचाता है चेपा, जागरूक बने आमजन और किसान
विनय एक्सप्रेस समाचार, नागौर। ज्यों-ज्यों रबी फसल पक कर खेतों में लहलहा रही है, त्यों-त्यों मोयला या चेपा कीट की बढोतरी हो रही है। जो फसलों के नुकसान के साथ-साथ, राह चलते लोगों के अकस्मात दुर्घटना का भी कारण बनते है। यह कीट हवा में भारी संख्या में उड़ते है तथा सड़कों, रास्तों में फैल जाने से पैदल और वाहन चालकों खासकर दुपहिया वाहन चालकों के लिए दुर्घटना का सबब बनते हैं। फरवरी-मार्च में इन कीटों का फैलाव अत्यधिक होता है, जिसके बचाव में सावधानी के लिए हेलमेट, आंखों पर चश्मा तथा गीला रूमाल अपने पास रखना चाहिए।
उप निदेशक कृषि (विस्तार) श्री शंकरराम बेड़ा के अनुसार चेपा, एफिड, मोयला या माहु एक ही कीट के विभिन्न नाम है। इस कीट के प्रौढ पंखयुक्त एवं पंख विहीन दोनों प्रकार के होते है। जो पारदर्शी होते हैं और इसके वक्ष पर तीन जोडी टांगे व उदर नौ खण्डों में बंटा होता है। श्री बेड़ा के अनुसार निम्फ तथा प्रौढ़ दोनों हानिकारक अवस्थाओं में चेपा पौधों के कोमल भागों पर समूह के रूप में स्थायी रूप से चिपककर पौधों का रस चूसते है, जिससें पौधों की बढ़वार रूक जाती है और पौधे पीले पडकर सूखने लगते हैं। रबी की लगभग सभी फसलों के उत्पादन पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पडता है। सरसों में इसके प्रभाव से फलिया भी कम बनती है तथा दानों में तेल की मात्रा कम हो जाती है। मोयला कीट नवम्बर-दिसम्बर माह से फसलों पर दिखाई देने लग जाता है, जो फरवरी-मार्च तक फसलों को नुकसान पंहुचाते रहते है। चेपाध्मोयला कीट मैदानीं क्षैत्रों में अण्डे नहीं देता बल्कि सीधे शिशु को जन्म देता है। जिसकी थोडे समय में बहुत ज्यादा वृद्धि हो जाती है।
श्री बेड़ा ने बताया कि किसानों को इन कीटों के प्रबन्धन एवं नियंत्रण के लिए रबी फसलों की बुवाई समय पर जल्दी कर लेनी चाहिए।
जिससें फसलें सही समय पर बड़ी हो जाए और मोयला या चेपा का प्रकोप सहन करने लायक हो जाए। इसके अलावा मोयला कीट नियन्त्रण हेतु मित्र कीटों का प्रयोग करना चाहिये जैसे एफिड लाॅयन(क्राइसोपर्ला कोर्निया) एवं लेडी बर्ड बीटल आदि मित्र कीट मोयला का भक्षण कर फसलों की सुरक्षा करते है।
इस कीट को रोकने के लिए रासायनिक नियन्त्रण एसिटामिप्रिड की एक ग्राम मात्रा दो लीटर पानी में या इमिडाक्लोरप्रिड 17.8 प्रतिशत एसएल की एक मि.ली. मात्रा दो लीटर पानी में मिलाकर यानी एक हेक्टेयर क्षैत्र में नियन्त्रण हेतु 250 ग्राम एसिडाप्रिड या 250 मि.ली. या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एसएल या एक लीटर मोनोक्रोटोफाॅस में से किसी एक दवा को 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रभावित फसलों पर स्पे्र करना चाहिये। जैविक कीट नियन्त्रण हेतु नीम उत्पाद अजाडिरेक्टीन का 1500 पी.पी.एम. का घोल 500 लीटर पानी मे प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करना चाहिए।